भूमिका

JJ Act अन्य सभी कानूनों से सर्वोच्च : इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय — विधिक विश्लेषण



बाल अपराधों से संबंधित न्याय प्रणाली के लिए Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015 एक विशेष कानून (Special Legislation) के रूप में अधिनियमित किया गया है। हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह घोषित किया कि JJ Act की प्रावधानें अन्य सभी सामान्य कानूनों पर वरीयता रखती हैं।

यह निर्णय न केवल विधि सिद्धांत की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह न्यायिक दृष्टिकोण को भी पुनर्परिभाषित करता है कि “बाल अपराधी” को सामान्य अपराधी की तरह नहीं देखा जा सकता।


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मामले का सारांश


मामले में अभियुक्त ने यह दावा किया कि अपराध के समय उसकी आयु 18 वर्ष से कम थी। उसने विद्यालयी अभिलेख प्रस्तुत किए जिनसे यह स्पष्ट हुआ कि अपराध के दिन वह बालक (juvenile) था।
इसके बावजूद, निचली अदालत ने उसे वयस्क की भांति जेल में भेज दिया।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि:

> “यदि अभियुक्त अपराध के समय बालक था, तो उसे किसी भी स्थिति में जेल में नहीं रखा जा सकता। उसे Juvenile Justice Board के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य था।”




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विधिक विवेचना


(1) विशेष कानून बनाम सामान्य कानून


अदालत ने अधिनियम की धारा 1(4) का उल्लेख करते हुए कहा कि यह धारा स्पष्ट रूप से “नॉन ऑब्स्टैंट क्लॉज़” (Non-Obstante Clause) रखती है — अर्थात्

> “यह अधिनियम बालकों से संबंधित मामलों में अन्य किसी कानून के होते हुए भी प्रभावी रहेगा।”



इस प्रकार, JJ Act को विशेष कानून (Special Statute) माना गया जो सामान्य आपराधिक कानून (CrPC, IPC आदि) पर वरीयता रखता है।


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(2) प्रक्रिया संबंधी सुरक्षा


धारा 10 के अंतर्गत किसी भी बाल अपराधी को पुलिस लॉक-अप या जेल में रखने पर स्पष्ट प्रतिबंध है।


अदालत ने यह माना कि निचली अदालत द्वारा अभियुक्त को जेल में भेजना अधिनियम की आत्मा के विरुद्ध था।


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(3) न्यायालय का दृष्टिकोण


माननीय न्यायालय ने कहा कि —


> “Juvenile Justice Act केवल दंड का विधान नहीं है, बल्कि यह पुनर्वास और संरक्षण पर केंद्रित सामाजिक विधान है।”



इसलिए, जब भी बालक की आयु पर संदेह हो, तो संदेह का लाभ अभियुक्त को दिया जाना चाहिए और उसे JJ Board के समक्ष भेजना चाहिए।


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निर्णय का प्रभाव


1. व्यवहारिक दृष्टि से — यह निर्णय पुलिस, मजिस्ट्रेट और अभियोजन अधिकारियों को यह चेतावनी देता है कि वे नाबालिग अभियुक्तों से संबंधित मामलों में JJ Act की प्रक्रिया का पूर्ण पालन करें।


2. न्यायिक दृष्टि से — यह निर्णय पुनः स्थापित करता है कि JJ Act पुनर्वासात्मक कानून (Rehabilitative Law) है, न कि दंडात्मक (Punitive Law)।


3. विधिक दृष्टांत के रूप में — यह निर्णय भविष्य में निचली अदालतों के लिए मार्गदर्शक (precedent) बनेगा कि किसी भी विवादित आयु के मामले में “पहले जांच, फिर जेल” का सिद्धांत अपनाया जाए।




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निष्कर्ष


इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय बाल न्याय व्यवस्था के संवैधानिक उद्देश्यों की पुष्टि करता है।
यह स्पष्ट करता है कि 

> “बाल अपराधी को अपराधी नहीं, सुधार योग्य नागरिक के रूप में देखा जाना चाहिए।”



JJ Act की सर्वोच्चता को मान्यता देकर न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) की भावना बालकों के लिए भी समान रूप से लागू हो।
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